*मन और शरीर एक दूसरे पर आश्रित हैं*
जापानी डॉक्टरों ने अनेक शोधों के पश्चात् जो बताया है कि हमारे मन-मस्तिष्क की भावनाओं का हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है, वह पूरी तरह सत्य है। उनके अनुसार अधिक चिंतित और तनावग्रस्त रहने से अम्लता (एसिडिटी), अपनी भावनाओं को दबाने से उच्च रक्तचाप व अवसाद, आलस्य से कोलेस्ट्रॉल बढ़ना, दु:खी रहने से दमा और स्वार्थपरता से मधुमेह जैसे रोग हो जाते हैं।
जापानी डॉक्टरों के ये निष्कर्ष पूरी तरह हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियों के उपदेशों के अनुरूप ही हैं। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने स्पष्ट लिखा है कि मानसिक रोगों से ही शारीरिक कष्ट या रोग होते हैं-
*सुनहु तात अब मानस रोगा।*
*जिनते दुख पावहिं बहु लोगा॥*
उन्होंने इन मानसिक रोगों और उनसे उत्पन्न होने वाले शारीरिक रोगों को विस्तार से भी बताया है-
*मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला।*
*तेहि ते पुनि उपजहिं बहु सूला॥*
*काम वात कफ लोभ अपारा।*
*क्रोध पित्त नित छाती जारा॥*
*प्रीति करहिं जो तीनिहुँ भाई॥*
*उपजहि सन्यपात दुखदाई॥*
अर्थात् सभी बीमारियों की जड़ मोह है, जिससे सभी लोग कष्ट पाते हैं। काम या वासना से वात रोग, लोभ या स्वार्थ से कफ रोग तथा क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, चिंता आदि से पित्त रोग रोग होते हैं। जब ये तीनों मिल जाते हैं, तो मनुष्य सन्निपात की स्थिति में पहुँच जाता है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि आयुर्वेद के मतानुसार कफ, वात और पित्त ये तीन दोष हमारे शरीर में होते हैं। जब तक ये तीनों संतुलन की अवस्था में होते हैं, तब तक हम स्वस्थ रहते हैं और जब यह संतुलन बिगड़ जाता है, तो अनेक प्रकार के शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं। ये तीनों दोष हमारी मानसिक स्थिति पर अधिक निर्भर करते हैं और शारीरिक स्थिति पर कम। जैसा कि जापानी डॉक्टरों ने भी अपने शोध में बताया है कि रोगों का शारीरिक कारण केवल 10% होता है, शेष अन्य कारण हैं जिनमें आध्यात्मिक, मानसिक और सामाजिक कारण सम्मिलित हैं।
अब प्रश्न उठता है कि इस ज्ञान का रोगों को दूर करने में क्या उपयोग है? इसका उत्तर यह है कि ऊपर बतायी गयी मानसिक भावनायें शारीरिक बीमारियों का मुख्य कारण होती हैं, अत: उन कारणों को दूर कर देने पर उन रोगों को दूर करने में सहायता अवश्य मिलती है। जैसे क्रोध करने से पित्त कुपित होता है, तो प्रसन्न और संतुष्ट रहने से पित्त सामान्य हो जाना चाहिए और होता भी है। खुलकर हँसने को अनेक रोगों का इलाज बताया गया है, वह काल्पनिक नहीं है।
इसी तरह अन्य मानसिक भावनाओं के बारे में समझा जा सकता है। जिस तरह नकारात्मक भावनाओं का शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है, उसी तरह सकारात्मक भावनाओं का शारीरिक स्वास्थ्य पर अच्छा या सकारात्मक प्रभाव पड़ना अवश्यंभावी है।
अपने मन की भावनाओं को स्वस्थ रखने के लिए कई उपाय बताये गये हैं, जैसे-
* ध्यान (योग, प्राणायाम)
* हँसना
* विचारों का प्रकटीकरण (आदान-प्रदान)
* व्यस्त रहना (बौद्धिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना)
यह अवश्य है कि केवल इन्हीं उपायों पर निर्भर रहना शायद किसी रोग को दूर करने के लिए पर्याप्त न हो। अत: इनके साथ-साथ उस रोग का भौतिक उपचार भी करना चाहिए।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है और स्वस्थ मन से ही शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है। मन और शरीर एक दूसरे पर पूरी तरह आश्रित हैं। एक के स्वास्थ्य का प्रभाव दूसरे पर पड़ना अवश्यंभावी है।
— *विजय कुमार सिंघल*
ज्येष्ठ द्वितीय कृ ८, सं २०७५ वि (६ जून २०१८)
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